ज्ञान को प्राप्त करने की जो प्रक्रिया-पद्धित थी हजारों साल पहले थी, आज भी वही है, ईश्वर को प्राप्त करने के लिये, गुरू के ज्ञान को आत्मसात करने के लिये, स्वयं के ज्ञान के लिए ज्ञान-शक्ति-भक्ति और चेतना की ही है।
समय के साथ सब बदलता है परन्तु गुरू का अपने शिष्य के प्रति प्रेम-दायित्व नही बदलता। गुरू का यही प्रयत्न व चेष्टा रहती है कि अन्त में मेरा शिष्य को अकेला व हारा हुआ न समझे, अगर हम सही समय पर दुःख से लडने की शक्ति, स्वयं पर नियंत्रण रखना सीख ले तो कठिन समय कब निकलेगा पता ही नहीं चलेगा क्योंकि ईश्वर की भक्ति में जो इतनी शक्ति है जो एक बूढे़ को भी नाचने पर विवश कर दे।
फिर एक वर्ष का अन्त आ गया है आप स्वयं का आकलन करे कि बिते इन ग्यारह माह में आपने कितना गुरू का ज्ञान अपने अन्दर आत्मसात किया है, कितना कुछ नया सिखा है, अपने भीतर कितनी आत्मिक, भावनात्मक, शारीरिक शक्ति का विकास किया है, ईश्वर कि कितनी भक्ति में तल्लीन हुए हो हो ये सभी किया होगा तभी तो वास्तविक चेतना प्राप्त होगी।
बीते वर्ष में बहुत सुखद पल रहे साथ ही कई कष्टों का, असफलता का भी सामना भी करना पड़ा। आने वाले इस वर्ष में हममे आत्मा बल चेतना व गुरू शक्ति आशीर्वाद हो।
अपना
श्रीमाली
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