में भगवती मातंगी की दीक्षा प्राप्त होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। विश्वामित्र ने तो यहां तक कहा है- 'बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी दीक्षा में स्वतः ही हो गया है। केवल मातंगी दीक्षा को ही सम्पन्न कर लें तो, भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है। इसीलिए तो शास्त्रें में मातंगी दीक्षा की प्रशंसा में कहा गया है- मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते अर्थात् मातंगी एकमात्र श्रेष्ठतम दीक्षा है और एक मात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है।
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मातंगी की मंत्र दीक्षा से गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है। यदि पति-पत्नी के मध्य सम्बन्धों में मधुरता नहीं रह गई हो, तो इस दीक्षा के माध्यम से सम्बन्ध मधुर हो जाते हैं। साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्रियों, पत्नी, स्वास्थ्य, पूर्णायु आदि सभी कुछ प्राप्त होता है, जिससे उसका गृहस्थ जीवन पूर्ण माना जा सकता है।
यह दीक्षा वस्तुतः रस एवं सौन्दर्य की दीक्षा है, इसको सम्पन्न करने से वcters
दीक्षा से साधक के जीवन में ऐश्वर्य की पूर्ण प्रधानता हो जाती है। स्वास्थ्य, आय, धन, भवन सुख, वाहन सुख, राज्य सुख, यात्रयें और विविध इच्छाओं की पूर्ति सब कुछ तो मातंगी अपने साधक को प्रदान कर देती है।
मातंगी को भोग एवं विलास की देवी भी कहा गया है, अतः इस साधना से व्यक्ति के अन्दर यौवन पुनः अंगड़ाई लेने लगता है और वृद्धावस्था दूर होने लगती है। कई साधकों का प्रत्यक्ष अनुभव रहा है कि इस दीक्षा को सम्पन्न करने के पश्चात् चेहरे पर एक तेज आ गया है।
पुरूषों में जहां मातंगी दीक्षा पूर्ण पौरूषता प्रदान कर व्यक्ति को निर्भय और यौवनवतर यौवनवत् बना देती देती है है है युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक कोमलतct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युककोमलत बन युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct युक युकct
प्रायः देखा गया है कि धन-धान्य से व्यक्ति परिपूर्ण तो होता है, परन्तु उसके जीवन में इतना अधिक तनाव व्याप्त हो जाता है, कि सब कुछ होते हुये भी उसके पास कुछ नहीं होता। दीक्षा के बाद जीवन में उमंग और उल्लास का वातावरण सदैव बना रहता है।
विवाह हेतु भी मातंगी की दीक्षा को करते हुये प्रायः साधकों को देखा गया है। पुत्र अथवा पुत्री के विवाह में यदि बाधा आ रही हो, तो वह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है तथा योग्य वर/वधू की प्राप्ति होती है।
इस दीक्षा के प्रभाव से साधक में अदम्य उत्साह तथा सब कुछ कर गुजरने की क्षमता स्वतः ही आ जाती है। के अन्दर भय तत्व को समाप्त करने की यह श्रेष्ठ दीक्षा है। समाप्त हो जाने के बाद फिर कैसी भी विषम परिस्थिति हो, व्यक्ति उससे विचलित नहीं होता है।
यदि इस दीक्षा को पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सम्पन्न किया जाये, तो जिसct
दीक्षा को मातंगी जयंती या किसी भी सोमवार को प्रारम्भ किया जा सकता है। प्रातः काल उठकर स्नान करने के पश्चात् ''दैनिक साधना विधि'' पुस्तक से गुरू पूजन सम्पन्न करें तथा इस दीक्षा में सफलता के लिये प्रार्थना करें। दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जायें। सर्वप्रथम 'मातंगी यंत्र' को हाथ में लेकर जल से स्नान करायें, तत्पश्चात् उसे पोंछ कर किसी ताम्र पात्र में स्थापित करें। यंत्र का कुंकुम अक्षत से पूजन करें तथा धूप-दीपक लगा दें। इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर भगवती मातंगी का ध्यान करें-
श्याम रंग से सुशोभित भगवती मातंगी, जिनका मस्तक तेज से युक्त है, तीन नेत्रें वाली, कोमल हृदय वाली देवी जो रत्न के सिंहासन पर विराजमान है। अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली है, देवगण भी जिनके दोनों चरणों की पूजा करते हैं, नील कमल के समान, कान्ति से पूरित, राक्षसों के लिये राक्षस रूपी, अरण्य के लिये दाणनि के समान है, जिनके चारों हाथों में पाश, खडग , अंशक, कमल है, जिनसे वे शत्रुओं का नाश कर साधक को अभीष्ट फल देती है, ऐसी आनन्ददात्री भगवती मातंगी को मैं नमस्कार करता हूँ। इसके बाद 'मातंगी माला' से निम्न दशाक्षर मंत्र की 11 माला मंत्र जप 16 दिन तक नित्य करें।
दीक्षा समाप्ति के बाद साधक यंत्र व माला को नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर दें। इस साधना से निश्चय ही साधक को भगवती मातंगी की कृपा प्राप्त होती है और उपरोक्त लाभ प्राप्त होते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
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