भैरवी की साधना करने से साधक समस्त शत्रु पर विजय प्राप्त करता है चाहे वह शत्रुओं अधिदैविक हों, अधिभौतिक हों अथवा आध्यात्मिक हों। जीवन में आ रही हर प्रकार की बाधाओं का शमन होता है। बाधाओं के निर्वाण के लिए इस साधना का विशेष महत्व है।
शत्रुओं और बाधाओं का संहार करने के साथ ही त्रिपुर भैरवी अपने साधक को जीवन में यश, मान, पद, प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं, जिससे समाज में उसका एक अलग ही स्थान बन जाता है तथा लोग उसे विशेष सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। दस महाविद्याओं में भगवती त्रिपुर भैरवी षष्ठ क्रम में आती हैं। साधना से साधक को समाज में यश, सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा तथा वर्चस्व प्राप्त होता है। भैरवी को भगवती आद्या काली का ही स्वरूप माना गया है।
पुराणों में प्रसंग आता है, कि जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें अपनी पुत्री सती एवं उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, इस कारण सती को क्रोध आया और वह बिना आमंत्रण ही यज्ञ में को उद्यत हो गई क्रोध से उनका स्वरूप अत्यन्त उग्र व प्रचण्ड हो गया, जिसे देखकर भगवान शिव भागने लगे, तब अपने ही शरीर से सती ने दस महाविद्याओं का प्रस्फुटन किया, जिन्होंने शिव को दस अलग-अलग दिशाओं में मार्ग अवरूद्ध कर भागने से रोका। दिशा में रोकने वाली देवी भगवती त्रिपुर भैरवी थीं। शत्रुओं का दमन करने वाली सर्व दुःख तारिणी तथा षट्कर्मों में उपास्या हैं।
पंचमी विद्या भगवती छिन्नमस्ता का सम्बन्ध 'महाप्रलय' से है, जबकि त्रिपुर भैरवी का सम्बन्ध 'नित्य प्रलय' से है। पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होता रहता है। नष्ट करने का कार्य रूद्र का है और उन्हीं की शक्ति का नाम त्रिपुर भैरवी है। राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी जिस प्रकार तीनों भुवनों के पदार्थों की रक्षा करती हैं, उसी प्रकार त्रिपुर भैरवी उन सभी पदार्थों का क्षणिक विनाश इसी शक्ति पर निर्भर है।
भगवती त्रिपुike भैरवी स्वरूप भैरवी यामल तंत्र में भगवती त्रिपुike भैरवी के स्वरूप को निमct
सहस्त्र कान्तिमरूण क्षौमां शिरोमालिकां।
पयोधरां जप पटीं विद्यामभीति वरम्।
त्रिनेत्र विलस द्क्क्त्ररविन्द श्रियं।
बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम्।।
त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस्त्र सूर्यों की कान्ति के समान है। रक्त वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण किये हुए हैं। गले में मुण्ड माला तथा दोनों स्तन रक्त से लिप्त हैं। वे अपने हाथों से जप-माला, पुस्तक, अभय मुद्रा, तथा वर मुद्रा धारण किये हुए हैं। -कमल जैसी शोभा वाले उनके तीन नेत्र हैं। मस्तक पर रत्न जटित मुकुट तथा मुख पर मन्द मुस्कान है।
वराही तंत्र में लिखा है, कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि त्रिदेवों ने आदि काल में एक समय देवी की पूजा की थी, इसलिए इनको त्रिपुरा नाम से भी जाना जाता है। त्रिपुर भैरवी साधना के सन्दर्भ में मुझे सन् 2012 की वह घटना याद आती है जब मेरा ट्रांसफर राजस्थान के झूंझनू शहर में हुआ था। एक दिन अचानक ही ऑफिस में मेरे सीने में तेज दर्द हुआ, मैं छटपटाने लगा तो मेरे साथी (काम करने वालों) ने मुझे तुरन्त हॉस्पिटल पहुँचा दिया। हॉस्पिटल तक पहुंचते-पहुंचते मैं लगभग बेहोश ही हो गया। मेरे साथी समझ ही नहीं पाये कि ये अचानक क्या हो गया, इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। चार घण्टे हॉस्पिटल में इलाज लेने के बाद मुझे घर भेज दिया और साथ में कुछ दवा आदि भी दे दी। मैं नियमित रूप से दवा लेता रहा, परन्तु डॉक्टरों को मेरा रोग समझ में नहीं आया था। उन्होंने मुझे चैकअप करवाने के लिए दुबारा आने को कहकर डिस्चार्ज कर दिया।
लगभग पांच-छः दिन ही गुजरे थे कि अचानक मेरी पत्नी को भी इसी प्रकार से सीने में दर्द हुआ और वो वहीं लगभग दस मिनट में ही बेहोश हो गई। उसे भी तुरन्त हॉस्पिटल ले जाया गया, परन्तु वह रास्ते में ही अपने आप ही ठीक हो गई। ने उसे भी मेरा वाला इलाज देकर छुट्टी कर दी और चैकअप करवाने की सलाह दे दी।
पन्द्रह दिनों के अन्दर ही हम दोनों पति-पत्नी ने अपना चैकअप करवा लिया, परन्तु उस चैकअप में हमारी कोई बीमारी नहीं निकली। बाद प्रायः कभी मुझे तथा कभी मेरी पत्नी का एक बार बेहोश हो जाना आरम्भ हो गया। नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे हो रहा है?
अब मेरा ऑफिस में काम करने का दिल नहीं करता था एक अजीव सी कमजोरी हर समय महसूस होती रहती। कुछ चिड़चिड़ा सा भी हो गया था। बात-बात में झगड़ा, गाली-गलौज करना, घर का समान उठाकर फेंक देना, ये सब मेरी आम जिन्दगी में शामिल हो चुका था।
मेरे बेटे का कारोबार भी दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा था। हर कोशिश के बाद भी आर्थिक स्थिति दिनों दिन न्यून होने से उदास तो था ही अब गुस्से में और चिड़चिड़ेपन में भी रहने लगा। हमारा हंसता-खेलता परिवार देखते-देखते ही उदास और हर समय नीरस रहने वाले परिवार में बदल गया। -धीरे मेरे मित्र भी मुझसे कटने लगे।
यों ही एक दिन मैं जा रहा था कि एक बस स्टैण्ड पर मुझे गुरूदेव के शिविर के पोस्टर ने आकृष्ट किया, पोस्टर का शीर्षक था त्रिपुर भैरवी साधना शिविर। यों तो मैं साधना, मंत्र-यंत्र में विश्वास नहीं करता था, परन्तु पता नहीं किस प्रेरणा से मैं उस पोस्टर को देखकर साधना शिविर में भाग लिया। में पत्रिका प्राप्त की और पूज्य गुरूदेव जी से मिला और मैंने सारी समस्या गुरूदेवजी को ज्यों की त्यों बयान की और अपने घर की हालत का वर्णन किया। उनके अलौकिक व्यक्तित्व को देखकर ही मेरा रोम-रोम रोमांचित हो रहा था। सच कह दूं तो मुझे लग रहा था कि अब मुझे किसी इलाज की आवश्यकता नहीं है, मैं तो उनके दर्शन मात्र से ही ठीक हो गया। तभी पूज्य गुरूदेव की गम्भीर वाणी गूंजी- 'तुम्हारा तो पूरा घर ही तंत्र बाधा से पीडि़त है, तुम्हारे बेटे का काम बांध दिया है, तुझ पर तथा तेरी पत्नी पर मारण प्रयोग कर दिया है। ठीक किया जो तू यहां चला आया, अब सब ठीक हो जाएगा। तेरे मित्र ही तेरे शत्रु बन चुके हैं, तू तो बहुत ज्यादा संकट में है।'
गुरूदेव की बात सुनते ही मेरी आंख से आंसू बहने लगे और साथ ही मुझे मिला गुरूदेव की कृपा का अमृत, उन्होंने मुझे सांत्वना प्रदान की। मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा गुरूदेव अब मेरा कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तब गुरूदेव ने मुझे साधना की गोपनीय विधि देते हुए एक यंत्र व माला भी दी, जिसे प्राप्त कर जैसे मैं निहाल हो गया। मेरी स्थिति पहले से कई गुना अच्छी है और पूज्य गुरूदेव मेरे पूरे परिवार के गुरू हैं। मंत्र-तंत्र तो जैसे अब हमारे लिये प्राण बन चुके हैं अब इसकी आलोचना करना तो दूर, सुनना भी बहुत मुश्किल है। के लाभ के लिये मैं वही साधना विधि यहां लिख रहां हूं। ये साधना वास्तव में तीनों लोकों के शत्रुओं का संहार करने में सक्षम है तथा बड़े से बड़ा तंत्र प्रयोग इसके माध्यम से दूर हो ही जाता है, ये मेरा अनुभव है, मेरे लिए तो ये साधना पूज्य गुरूदेवजी का प्रदान किया हुआ वरदान ही है।
भैरवी साधना विधान
इस साधना में आवश्यक सामग्री त्रिपुike भैरवी यंत्र, त्रिपुike शक्ति माला, त्रिशक्ति गुटिका है।।।।।।।।।।। यह साधना आप किसी भी समय कर सकते हैं हैं, प्रातः काल की ये साधना विशेष फलदायी है।।।।।।।।।।।।।
स्नान आदि करके पूर्वाभिमुख होकर साधना सम्पन्न करे। धोती, पीला वस्त्र धारण करें। गुरू पीताम्बर अवश्य ओढ़ लें और अपने सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा लें, उस पर त्रिपुर भैरवी यंत्र और त्रिशक्ति गुटिका स्थापित कर, यंत्र पर कुंकुम की तीन बिन्दियां लगाएं संक्षिप्त गुरू कर फिर धूप व दीप लगायें, दीप घी का ही होना ik
Goed
त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषिः शक्ति
त्रिपुर भैरवी देवता ऐं बीज ह्रीं शक्तिः क्लीं
महा अभीष्ट सिद्धिये जपे विनियोगः।
Karanya's
अंगुष्ठाभ्यां नमः।, हसरीं तर्जनीभ्यां नमः।,
नमः।, हसरै अनामिकाभ्यां नमः।,
नमः।, : करतल करपृष्ठाभ्या नमः।
षंडगन्यास
हृदयाय नमः।, शिरसे नमः।,
शिखायै वषट। कवचाय हुं।, नेत्रयाय
, अस्त्रय फट्।
Goed
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सहस्त्रकान्मिरूण क्षौमां शिरोमालिकां।
पयोधरां जप पटीं विद्यामभीति वरम्।
त्रिनेत्र विलस्द्क्क्त्ररविन्द श्रियं।
बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दं समन्दस्मिताम्।।
ध्यान के पश्चातה
समाप्ति के बाद दूध से बना भोग लगाये। अगले दिन यंत्र माला और गुटिका को किसी नदी में विसर्जित कर दें
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