पित्रे के देव लोक गमन उपरान्त हमे पूरे वर्षभर केवल ये ही समय मिलता है जब हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का पुनः अवसर प्राप्त होता है, यह कोई शोक दिवस नहीं अपितु वह दिवस रूपी तिथि है जब चक्र को के निकट गये है। ये जानकर बहुत खेद होता है कि अधिकतर लोगों को हिन्दु तिथि भी ज्ञात नहीं होती जब उनके प्रिय इस लोक को छोड़ गये थे। वर्ष के इन सोलह दिवसों पर हर हिन्दु को या तो उस अमुख तिथि अथवा दिवस अगर ज्ञात न हो तो सर्व पितृ अमावस्या (इस वर्ष 6 अक्टूबर) को अवश्य ही पूर्ण विधिवत श्राद्ध सम्पन्न करना ही चाहिये, हमे यह अवसर मिला है जब हम अपने मृत पूर्वजों को अपने निकट अनुभव कर सके साथ ही आने वाली पीढ़ी को इस आवश्यक संस्कार का ज्ञान भी दे सके।
पितृ पक्ष श्राद्ध किसी भय या किसी के रूष्ट होने की आशंका चलते नही अपितु एक माध्यम समझकर जो हमें हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त होगा व हमें उन्हें सम्मान व श्रद्धाजंलि अर्पित करने व स्वयं के जीवन को सक्षम बनाने व से मुक्त कराने हेतु निर्णायक होगा।
परिवार पितरों के रूष्ट होने से आजीवन उसका कुप्रभाव भोगते है जिससे हम सभी अवगत है पर यह कुस्थिति व कुरीति आप सबके साथ न घटित हो तो आप अवश्य इस पितृ पक्ष अवश्य ही श्राद्ध सम्पन्न करें।
अपना
श्रीमाली
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