Wat is de beste manier om geld te verdienen? नारी चाहे कितनी ही क्यों ना पढ़-लिख जाये, ऊँचे पदों पर कार्यरत रहे, आधुनिक बन जाये, लेकिन उसका मन संस्कारों से हमेशा जुड़ा रहता है। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होते हुये भी वह अपने अपने पुरातन रीतिike िवरिवाजों, लोक-लोकcentrort ankerओं और आदर्शों को भूल भूल प पctती है।।।।।।।।।।।।।। अन्तर्मन में ममता, स्नेह, त्याग, करूणा एवं सहयोग के भावों को समेटे नारी जीवन में पग पग पwoord परष कर्ष का सामना करना है है। है है है echt फिर भी वह मुस्कुराकike हर कठिनर कठिनाईयों में हुई हुई अपने परिवार की सुख सुख समृद्धि, खुशहाली की कामना करती है।।।।।।।।।।।
नारी के दिन की शुरूआत ही पूजा-पाठ, सूर्य देव को अर्घ्य देने एवं तुलसी के के पौधे में चढ़ चढ़ाने से होती है है।।।।।।।। है है है है है है है है पर्व, व्रत, उपवास, आराधना, पूजा नारी के जीवन से जुड़े पहलू हैं, जो उसे परिवार एवं समाज के साथ जोड़ते हुये आपसी रिश्तों को ताजा एवं मजबूत बनाते हैं। नारियों को त्योहार, उत्सव, पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है और और मर म मांगलिक अवसर विशेष विशेष विशेष विशेषologische लक हarm ूपो ह acht आज भी महिलायें व्रत-उपवास कर अपनी आस्था-श्रद्धा और परम्पike का निर्वाह करती है।।।।।।।।।।।।।
चौथ सुहागिनों का सबसे प्रिय व्रत है। जब वे अपने पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु जीवन की कामना करती हैं। करवा चौथ का व्रत पूर्ण रूप से पति-पत्नी के प्रेम और उनके गृहस्थ जीवन को ही समर्पित है। आर्य संस्कृति में पति को परमेश्वर का स्वरूप कहा ही नहीं अपितु उसकी पूजा भी परमेश्वर स्वरूप में होती है। कथाओं के अनुसार पत्नी का संसार पति की सेवा में अनुरक्त रहना है। को पतिव्रता पत्नी कहा गया है।
ने जब यह कहा कि सत्यवान की आयु बस एक वर्ष की है तो सावित्री ने निष्ठा तथा आत्मविश्वासपूर्वक कहा जो कुछ होने को था सो हो चुका। तो बस एक ही बार चढ़ाया जाता है। हृदय निर्मल हो चुका उसे लौटाया कैसे जाये? बस एक ही बार अपना हृदय अपने प्राणधन के चरणों में चढ़ाती है।
दिन आ पहुँचा जिस सत्यवान् के प्राण प्रयाण करने को थे, सत्यवान् ने कुल्हाड़ी उठायी और जंगल में लकड़ी काटने चला। ने कहा मै भी साथ चलूंगी। साथ जाती है। सत्यवान् लकड़ी काटने ऊपर चढ़ता है, सिर में चक्कर आने लगता है और कुल्हाड़ी नीचे फेंककर वृक्ष से उतरता है। पति का सिर अपनी गोद में रखकर पृथ्वी पर बैठ गयी।
तभी यमराज ने करूणाभर शब्दों में कहा- तुम पतिव्रता और तपस्विनी हो और मैं यमराज हूँ। की आयु पूर्ण हो गयी है अत एवं मैं उसे मृत्युलोक में ले जाता हूँ यमराज सत्यवान को ले जाता है। सावित्री भी उसी दिशा को जाने लगती है। यमराज ने मना किया परन्तु सावित्री बोली जहां मेरे पति स्वयं जा रहे हैं या दूसरा कोई उन्हें ले जा रहा हो- वहीं मैं भी जाऊंगी यही सनातन धर्म है। यम मना करते रहें और सावित्री पीछे-पीछे चलती गयी। उनकी इस दृढ़ निष्ठा और अटल पतिव्रता ने यम को पिघला दिया और यमराज ने एक करके वर रूप में सावित्री के अन्धे ससुर को आँख दे दी, धन दिया, साम्राज्य दिया, उसके पिता को सौ पुत्र दिये और सावित्री को लौट जाने के लिये ik ने अन्तिम वर के रूप में सत्यवान से सौ पुत्र मांगे और अन्त में सत्यवान जीवित हो जाये यह वर भी उसने प्राप्त कर लिया। और कहा- मैं पति के बिना सुख नहीं चाहती, बिना पति के स्वर्ग नहीं चाहती, बिना पति के धन नहीं चाहती, बिना पति के जीना भी नहीं चाहती, यमराज वचन हार चुके थे। सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को पाश मुक्त करके सावित्री को लौटा दिया।
को जीतकर पति के मृत देह को जीवित कर लौटा लाना, भारतीय पतिव्रता धर्मपरायण देवियों के लिये ही सम्भव था। तथ्यों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राचीन समय में किस प्रकार पति को परमेश्वर का स्वरूप समझ कर उसे अपना जीवन समर्पित कर नारियों ने पूर्णत्व को प्राप्त किया। पतिव्रत धर्म से ब्रह्माण्ड में कुछ भी करने में समर्थ थीं।
सदियों पुरानी इसी परम्परा को आज भी भारतीय नारी सौभाग्य चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत, साधना, आराधना, पूजा कर बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाती हैं। चौथ पर महिलायें हाथों में मेंहदी रचाती हैं। नृत्य, गायन, श्रृंगार के साथ सबसे महत्वपूर्ण जो है वह पति के दीर्घायु जीवन की कामना करती हैं।
के अनुरूप आज की नारी में भी परिवर्तन हुआ है। आज की भारतीय नारी पढ़ी-लिखी तो है ही, पर फिर भी उसके संस्कार ऐसे हैं कि वो अपने परिवार की श्रेष्ठता के लिये, घर-परिवार की समृद्धि, प्रगति, खुशहाली के लिये धनोपार्जन करने में भी अधिकांश नारियां समर्थ हैं। सामाजिक, बौद्धिक, पारिवारिक जिम्मेदारियों में वह अपने पति का पूर्ण सहयोग करती है। वह आवश्यक तत्व है जिससे गृहस्थ जीवन सुचारू रूप से चल सकता है। एक-दूसरे के लिये त्याग, प्रेम, श्रेष्ठ विचार, वाणी, संयम से ही गृहस्थ जीवन की मजबूत नींव रखी जा सकती है। अन्यथा आज जिस प्रकार पति-पत्नी के मध्य मतभेद, तनाव, शंकाओं, आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है। वह तो बहुत घृणित, पाप-दोषों से युक्त, पशु तुल्य ही कहा जा सकता है। किसी भी दृष्टि से भारतीय संस्कृति का भाग नहीं है। संस्कृति में इसका कहीं भी वर्णन नहीं मिलेगा।
गृहस्थ के लिये आवश्यक भी है और सहज भी। पति-पत्नी एक-दूसरे के सुख, दुःख के सहज संगी है। भी गृहस्थ के लिये आवश्यक है। यदि किसी ने कुछ अपशब्द कह दिया या विरूद्ध कार्य कर दिया तो उससे तुनककर, रूष्ट या क्रुद्ध होकर आपे से बाहर नहीं हो जाना चाहिये। समय उसको सह लेना ही श्रेयस्कर है। बाद में अनुकूल अवसर पाकर शांति से समझा देना चाहिये कि अपशब्द या अनर्गल कार्य व क्रोध से जीवन में सुख-शांति नहीं आती। सौहार्दपूर्वक यदि एक-दूसरे को सहन करते चलेंगे तो एक दिन घर के सभी सदस्य स्नेह शीलता का अनुभव करने लगेंगे। सहनशीलता में अहिंसा, अक्रोध, शांति, धृति तथा क्षमा की भाव की सम्मिलित है। पूर्वक शांति का वातावरण बनाये रखना ही गृहस्थी का मूल मंत्र है।
को स्वर्ग बनाना है तो उपर्युक्त पथों पर गतिशील होना पड़ेगा। पथ तो यहां अधिकाधिक मात्र में हैं। उनसे जीवन को सुरक्षित और संयमित कर उन्हीं मार्गों पर बढ़ना होगा जिन मार्गों को आर्य संस्कृति ने दर्शाया है। वहीं पर श्रेष्ठता, दिव्यता, प्रेम, माधुर्य, करूणा, सुखमय गृहस्थ जीवन का निर्माण हो सकता है।
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