चित्रों में यदि छिन्नमस्ता को देखा जाये तो उसका अत्यन्त भयानक रूप दिखाई देता है, नृत्य करती हुई देवी जिसके एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में तलवार है, जिसका कटा हुआ सिर तीसरे हाथ में है और चौथे हाथ में पाश है। से खून के फव्वारे निकल रहे हैं और पास खड़ी हुई दो योगिनियां उस छलकते हुए खून को अपने मुंह में पी रही हैं। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण साधना है और प्राचीन काल से ही इस साधना को दस महाविद्याओं में सर्वाधिक प्रमुखता दी गई है क्योंकि यही एक मात्र ऐसी साधना है जो वायुगमन प्रक्रिया की श्रेष्ठतम साधना है।
गमन प्रक्रिया साधना
महाविद्याओं में से केवल यही एक ऐसी साधना है, जिससे साधक अपने शरीर को सूक्ष्म आकार देकर आकाश में विचरण कर सकता है और वापिस पृथ्वी पर उसी रूप और आकार में आ सकता है। प्राचीन शास्त्रें में सैंकड़ों स्थानों पर वर्णन आया है कि नारद आदि ऋषि जब चाहे तब ब्रह्माण्ड के किसी भी लोक में चले जाते थे और कुछ ही क्षणों में वापिस आ जाते थे।
आज का विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करने लगा है कि यदि शरीर में विशेष वर्णों (या अक्षरों-जिन्हें अक्षर मंत्र कहा जाता है) की ध्वनि को निरन्तर गुंजरण किया जाये तो शरीर स्थित भूमि तत्व का लोप हो जाता है और शरीर वायु से भी हो कर आकाश में ऊपर उठ जाता है। जब उसी वर्ण या मंत्र का विलोम मंत्र जप या विलोम क्रम किया जाता है, तो वापिस शरीर में भूमि तत्व का प्रादुर्भाव होने लगता है और मनुष्य पुनः अपने मूल स्वरूप में पृथ्वी पर उतर आता है।
और अमेरिका में पिछले तीस वर्षों से इस चिंतन पर शोध हो रहा है और अब जाकर उन्हें इस क्षेत्र में सफलता मिली है। यह स्वीकार किया है कि बिना भारतीय शास्त्र अथवा बिना भारतीय तंत्र को समझे इस क्षेत्र में पूर्ण सफलता नहीं मिल सकती।
जब भूमि तत्व का लोप हो जाता है, तो मनुष्य का शरीर गुरूत्वाकर्षण से मुक्त हो जाता है और वह ऊपर उठकर शून्य में विचरण करने लग जाता है। स्थिति में उसका शरीर हवा से भी सूक्ष्म हो जाने की वजह से, पृथ्वी के किसी भी भाग पर एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने में उसे सुविधा होती है और वह मनोवांछित स्थान पर कुछ ही क्षणों में जा कर पुनः लौट आता है। इस प्रकार की सिद्धि के लिये भारतीय तंत्र में एक मात्र 'छिन्नमस्ता साधना' को ही प्रमुखता दी गई है।
सिद्धि
यद्यपि विशेष रूप से तैयार की हुई 'छिन्नमस्ता गुटिका' से व्यक्ति अदृश्य हो सकता है, परन्तु रसायन का श्रेत्र अपने आप में अलग है और अब भारतवर्ष में पारद संस्कार करने वाले व्यक्ति बहुत कम रह गये हैं जो कि सभी बावन संस्कार सम्पन्न कर सकें और गुटिका को तैयार कर सकें जिसे छिन्नमस्ता गुटिका कहते हैं और उसे मुंह में रखते ही व्यक्ति अदृश्य हो जाता है।
परन्तु यही क्रिया मंत्र साधना के माध्यम से आसानी से हो सकती है, यह कोई जटिल क्रिया पद्धति नहीं है। साधक निश्चय कर ही ले और इस तरफ पूरा प्रयत्न करे तो छिन्नमस्ता साधना की विशेष क्रिया के द्वारा वह अपने शरीर को अदृश्य कर सकता है। ऐसी स्थिति में वह तो प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी को देख सकता है, परन्तु दूसरे व्यक्ति उस को नहीं देख सकते। दोनों ही क्रियायें या ये दोनों ही साधनायें अपने आप में अत्यन्त उच्च और महान हैं। ये ही दो ऐसी साधनायें हैं, जिसकी वजह से पूरा संसार भारत के सामने नतमस्तक रहा है। तिब्बत के भी कई लामा इस प्रकार की विद्या सीखने के लिये भारतवर्ष में आते रहें और उन्होंने श्रेष्ठ साधकों से छिन्नमस्ता साधना का पूर्ण प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त कर इन महानताओं में सफलतायें प्राप्त की और अपने क्षेत्र में अद्वितीय सिद्ध हो सके।
संकल्प
इस प्रकार की साधना के लिये दृढ़ संकल्प-शक्ति चाहिये। जो साधक अपने जीवन में यह निश्चय कर लेते हैं कि मुझे अपने जीवन में कुछ कर के दिखाना है, मुझे अपने जीवन में साधनाओं में सफलता पानी ही है और कुछ ऐसी साधनायें सम्पन्न करनी है, जो अपने आप में अद्वितीय हों, जो अपने आप में अचरज भरी हो और जिन साधनाओं को सम्पन्न करने से संसार दाँतों तले उंगली दबा कर यह अहसास कर सके कि वास्तव में ही भारतीय तंत्र अपने आप में अजेय और महान है साधकों को दृढ़ निश्चय के साथ छिन्नमस्ता साधना में भाग लेना चाहिये।
साधना
यह पूर्ण रूप से तांत्रिक साधना है, परन्तु तंत्र के नाम से घबराने की जरूरत नहीं है। तो अपने आप में एक सुव्यवस्थित क्रिया है जिसके माध्यम से कोई भी साधना भली प्रकार से सम्पन्न हो पाती है। तंत्र के द्वारा निश्चित और पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती ही है, जो साधक सौम्य हों, सरल हों और अपने जीवन में किसी भी देवी देवता को मानते हों, वे साधक भी छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न कर सकते हैं और मैं तो यहां तक जोर दे कर कहूंगा, उन्हें अपने जीवन में निश्चय ही छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न करनी चाहिये।
यों तों पूरे वर्ष में कभी भी किसी भी शुभ दिन से छिन्नमस्ता साधना प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु वैशाख शुक्ल त्रयोदशी अर्थात 14 मई, छिन्नमस्ता दिवस पर सम्पन्न करें। साधना अभी तक सर्वथा गोपनीय रही है परन्तु जो प्रामाणिक और निश्चय ही सफलता देने वाली है।
साधना
स्नान कर पूजा स्थान में काली धोती पहन कर बैठ जायें और सामने लकड़ी के बाजोट पर कलश स्थापन कर दें। उसके बाद साधक कलश के सामने नौ चावलों की ढेरियां बनाकर उस पर एक रख कर उन नौ ग्रहों की पूजा करें और फिर एक अलग पात्र में गणपति को स्थापन कर उनका संक्षिप्त पूजन करें।
बाद अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर नया काला वस्त्र बिछायें तथा कपड़े के ऊपर शुद्ध घी से सोलह रेखायें नीचे से ऊपर की ओर खींचें। इन रेखाओं के मध्य में सिन्दूर लगायें, सिन्दूर के ऊपर प्रत्येक रेखा पर नागरबेल का पान रखें। इन सोलह स्थानों पर पान रख कर इन रेखाओं के पीछे श्रेष्ठ वायुगमन 'छिन्नमस्ता यंत्र' को स्थापित करें, यह मंत्र सिद्ध होना चाहिये। हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर इस प्रकार से भगवती श्री छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें।
इस प्रकार ध्यान कर जो हाथ में पुष्प और अक्षत हैं, वे अपने सिर पर चढ़ा दें। बाद सामने शंख पात्र स्थापित कर 'ऊँ शंखायै नमः' उच्चारण करते हुये उस शंख शंख में में जल जल, अक्षत और पुष्प डालें, फिर इस शंख को दोनों ह हाथों में लेकर भगवती लेकर भगवती छिनर छिन छिनcters कreekt का ध्यान करते हुयेक हुयेct
ऐसा कह कर हाथ में लिये हुये पुष्प और अक्षत को इन सोलह घृत धाराओं के सामने चढ़ा दें। हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढ़ कर जल छोड़ दें।
इस साधना में वायु गमन छिन्नमस्ता यंत्र का विशेष महत्व है। छिन्नमस्ता साधना के प्रत्येक अक्षर से प्राण प्रतिष्ठा की हुई होनी चाहिये। फिर इस यंत्र को अलग पात्र में जल से धो कर स्नान करा इस पर कुंकुम की सोलह बिन्दियां लगायें और निम्न मंत्र उच्चारण करते हुये उस यंत्र में लघु प्राण प्रतिष्ठा पुनः करें।
प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद यंत्र की संक्षिप्त पूजा करें। उस पर पुष्प समर्पित करें, अक्षत और भोग लगायें, फिर यंत्र के सामने एक त्रिकोण बना कर उस पर चावल की ढेरी बनाये और शुद्ध घृत का दीपक लगा दें। फिर इस दीपक का पूजन चन्दन, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य से करें और पूजन के तुरन्त बाद दोनों हाथों से दीपक बुझा दें और प्रणाम करें। तत्पश्चात् छिन्नमस्ता के मूल मंत्र की 11 माला छिन्नमस्ता मंत्र से जप करें।
जब 11 माला मंत्र जप हो जाये तब भगवती देवी की की woord करें और और क्षमा प्राvlakucht करें। इस प्रकार साधना सम्पन्न होती है है, साधक को नित्य इसी साधना को करना चाहिये, ग्यारह दिन तक साधना करने पर पर इच्छित पcters प्र पct
Het is verplicht om te verkrijgen Goeroe Diksha van Revered Gurudev voordat hij een Sadhana uitvoert of een andere Diksha neemt. Neem contact op Kailash Siddhashram, Jodhpur door E-mail , Whatsapp , Telefoonnummer or Aanvraag om toegewijd-bekrachtigd en door een mantra geheiligd Sadhana-materiaal en verdere begeleiding te verkrijgen,