Sadguru, die een schakel is tussen de toegewijde en God, die de toegewijde een eenvoudige en gemakkelijke manier toont om God te bereiken, en terwijl hij hem op dat pad leidt, hem laat opgaan in de Allerhoogste Vader, de Allerhoogste Ziel, dit is zijn speciale werk, waarvoor hij incarneert op deze aarde en geeft de boodschap van zijn kennis aan dit onwetende tijdperk, luisterend naar waar iedereen de waarheid kan interviewen en het echte feit van het leven kent, waarvan hij zich niet bewust is.
वह इस कार्य के लिये क्षण-प्रतिक्षण, प्रयत्नशील रहता है, कि मैं जैसे भी सम्भव हो इन अज्ञानी मनुष्यों को उस झूठे माया जाल से निकाल सकूं, जिस माया जाल में फंस कर वह मनुष्य भ्रमित हो गया है, वह यह भूल गया है कि उसका ध्येय यह नहीं कुछ और है और इस जाल से अगर कोई निकाल सकता है, तो वह केवल और केवल मात्र सद्गुरू ही निकाल सकता है, क्योंकि वह जानता है कि इस उलझन से, इस भंवर से कैसे बचकर निकला जा सकता है—–और का जन्म तो होता ही इसीलिये है।
प्रत्येक युग में एक ज्ञान की चेतना का पुँज हमारी आंखों के सामने अवतरित होता है और अपने ज्ञान, अपनी चेतना, अपने चिन्तन और धारणा को समाज के सामने प्रस्तुत कर वापिस लौट जाता है, लुप्त हो जाता है- , जिन्हें जगत गुरू कहा गया , वशिष्ठ, द्रोणाचार्य, बुद्ध, शंकराचार्य इत्यादि ऐसे अनेकों गुरूओं ने इस धरा पर जन्म लिया जिन्होंने इस धरा पर ज्ञान को फैलाकर मानव जाति को जाग्रत करने का अदम्य प्रयास किया और इसी कार्य में प्रतिपल संलग्न रहे। उनका ध्येय केवल मात्र इतना ही था कि मानव वास्तविक ज्ञान से, वास्तविक सत्य से वंचित न रह जाये यह बात और है कि हम समय रहते उन युग पुरूषों को पहचान नहीं पाते और उन स्वर्णिम क्षणों को गंवा बैठते है सामीप्यता हमें उनकी सामीप्यता , उनके साहचर्य में बिताने चाहिये।
हर बार वह चीख कर, चिल्लाकर, अपने-आप को तिल-तिल जलाकर, समाज द्वारा दी गई प्रत्यंचनाओं को झेलते हुये, उनके द्वारा दिये गये कड़वे जहर को शिव की तरह अपने कंठ में समाहित कर, हर क्षण धधकते अंगारों के बीच जलते हुये भी मनुष्यों के कल्याण के लिये अपने अपने रक्त की एक-एक बूंद को को बहा देते हैं।।।।।।।।।।।।
इतना होने पर भी हम उनकी कितनी सुन पाते हैं? यों तो हम कह सकते हैं कि उनकी अमृत वाणी सुनने के लिये हम भाग-भाग कर जाते है, अभी भी उसके लिये तैयार हैं, कैसेट पर भी उनकी आवाज सुनकर मन पुलकित हो उठता है, यह सब होते हुये भी यह सत्य है कि हम उनकी कही बातों को ठीक से सुन नहीं पाते, उसे आत्मसात् नहीं कर पाते और अगर ऐसा नहीं कर पाते तो न्यूनता हमारी है, उनकी नहीं।
एक मजबूत और सशक्त वृक्ष, जिसकी डाल टूट भी जाये, पत्ते पतझड़ में गिर भी जाये, तो भी वह अपना अस्तित्व नहीं खोता, क्योंकि उसकी जड़ो में तो चट्टानों को भी तोड़ने की ताकत है, जमीन की गहराईयों तक जाकर जल और खनिज पदार्थ प्राप्त करने की क्षमता है, जिस वृक्ष की जड़े जितनी गहरी और मजबूत होंगी होंगी होंगी, उस वृक्ष की हरियाली उतनी ही शीतलर सौमर सौम्य होंगी।।।।।। होंगी औ जितनी जितनी जितनी जितनी औrouw उसे किसी प्रकार का खतरा नहीं हो सकता, उसे किसी आंधी तूफ तूफान का भी भय नहीं होता।
उसी प्रकार चैतन्य जीवन्त गुरू अपनी तपस्या के बल पर, साधना के बल पर अपनी गरिमा को बनाये रखते हैं, उनकी ज्ञान रूपी जड़े इतनी विस्तृत व मजबूत होती है, कि कोई आंधी या तूफान उसे डिगा नहीं सकता। ऐसे सशक्त, मजबूत वृक्ष की छाया के नीचे आने वाला प्रत्येक शिष्य शीतलता प्राप्त करता है, जीवन की धूप में सद्गुरू के तपस्यांश शक्ति की सौम्य हवायें उसको सुख प्रदान करती ही है।
पूर्णिमा पर्व इन्हीं भावों को बोध करने का महापर्व है, गुरू महिमा का साक्षात्कार करने का चिंतन है। आत्मिक समर्पण के प्रगटिकरण का दिवस है गुरू पूर्णिमा। यह एक ऐसा दिवस है, जब गुरू अपने शिष्यों के मस्तक पर प्रतिबिम्ब स्वरूप में उपस्थित होकर उसे आशीर्वाद् देते हैं, उसके भौतिक समस्याओं के निवारण का मार्ग प्रशस्त करते है। उसके जीवन की विषमताओं का विषपान कर उसे ऊर्ध्वता देते हैं।
सद्गुरू कैसे होते हैं, उनकी महिमा कैसी होती है यह तो वह ही बता सकता है, जिसने उनकी निकटता प्राप्त की हो उसे देखकर ही यह जाना जा सकता है, कि ईश्वर क्या है, कैसा है, उसकी सर्वोच्चता क्या है? क्योंकि सद्गुरू को देखकर ही हम उस परम सत्ता परमात्मा को पहचान सकते हैं, उससे साक्षात्कार कर सकते हैं, उससे एकाकार हो सकते हैं, पर उस सर्वोच्च सत्ता में अंगीकार कराने का माध्यम तो वही एकमात्र सद्गुरू होता है, जो मनुष्यों के बीच उन जैसा बन कर ही, उन्हीं के मध्य साधारण रूप में ike रहकर जीवन यापन कर उनके भौतिक और आध्यात्मिक दोनों धरातलों के बीच बन बन बन खते खते okखते खते हुयेvlucht पू ok कrijk है ok कrijk है ok कrijk है ok कrijk हैvast
मानव अपनी तन्द्रा को सहेज कर रखे हुये है, जो प्रतिपल उसे मृत्यु की ओर अग्रसर कर रहीं है और सद्गुरू ले चलते हैं, उसे मुक्ति के पथ पर, अमृत की राह पर, क्योंकि जागते ही उसे ज्ञान हो जाता है उस अमृत कुण्ड का जो उसके भीतर ही प्रस्तुत है, जो मिट नहीं सकता, जो शाश्वत है। क्योंकि जब तक शिष्य अपने आप को पूर्णरूप से समर्पित नहीं करेगा, अपने आप को मिटायेगा नहीं तब तक वह देह-तत्व से उठकर प्राण-तत्व में नहीं जा सकता और जब ऐसा हो जाता है तो उसके भीतर परमात्मा दृष्टव्य हो जाता है। इसके लिये आवश्यकता है तो समय रहते उस व्यक्तित्व को पहचान लेने की, पूर्णरूप से अपने आप को उनके चरणों में समर्पित कर देने की, आवश्यकता है श्रद्धा और विश्वास की, क्योंकि तभी उस उच्चता तक पहुँचा जा सकता है, तभी उस परमात्मा से साक्षात्कार किया सकता है।
भौतिक और आध्यात्मिक संतुलन को बनाये रखते हुये उस उच्चता तक पहुँचना, उस ब्रह्म से एकाकार होना ही तो श्रेष्ठ जीवन कहलाता है और ऐसा दिव्य अवसर प्राप्त होता है गुरू पूर्णिमा पर यही वह अवसर है, जब शिष्य गुरू से अपने भाव व्यक्त, वरदहस्त को सदा-सदा के लिये प्राप्त कर लेता है, अपनी जीवन की न्यूनता के संहार की कामना लेकर जब वह गुरू चरणों में पहुँचता है, स्वतः ही उसके महा-जीवन के नवीन निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। यदि आप सभी ऐसे दिव्य भावों, चिन्तन के साथ गुरू पूर्णिमा महापर्व पर उपस्थित होते हैं, तो निश्चय ही सद्गुरू के 'ब्रह्म' स्वरूप का दर्शन और आशीर्वाद् युक्त चेतना प्राप्त कर सकेंगे।
विधि
गुरू पूर्णिमा महापर्व 24 जुलाई या किसी भी गुरूवार की प्र्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर पीली धोती और गुरू चादर धारण करे। स्थान में सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला बस्त्र बिछायें साथ ही बाजोट के बायें ओर शुद्ध घी का दीपक जलायें। बाद किसी ताम्र पात्र में ॐ लिखकर उस पर गुरू यंत्र और जीवट को स्थापित कर पंचोपचार पूजन कर अपनी मनोकामनाये व्यक्त कर सद्गुरूदेव का ध्यान करे। फिर संकल्प लेकर नारायण माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करे।
मंत्र जप समाप्ति के बाद गुरू आरती व सम्पर्ण स्तुति सम्पन्न करें व साधना सामग्री को किसी मनct
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