कार्तिकेय, भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र हैं और देवताओं के रक्षक भी है।।।।।।।।।।।।।।।।। कार्तिकेय का तात्पर्य सर्व विजय श्री प्रदाता शत्रु संहारक पराक्रम के देव एवं एवं शीघcters इन्हें प्रधान देव माना जाता है, भगवान सुब्रमण्यम व मुरूगन देव भी कहा जाता है।।।।।।।। मुरूग का तात्पर्य है, सौन्दर्य, ताजगी, सौरभ, माधुर्य, दिव्यता तथा आनन्द और सुब्रमण्यम का तात्पर्य है ज्ञान, लक्ष्मी, शत्रुहन्ता, मृत्युंजय, निरोगता युक्त हो
अतः शिव परिवार के सभी गणों से हम हम अपने जीवन को को जीवन्त जाग्रत कर है है।।।।।।।।।।। उक्त स्थितियों की प्राप्ति के लिये आवश आवश्यक है कि महाशिवरात्रि पर्व पर कुम्भ अमृत शिव-शिवरी शक्ति साधना दीक्षा आत्मसात् करें।।। कार्तिकेय ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और पूर्णता के प्रतीक है साथ ही जहां कार्तिकेय की पूजा होती है, वहां ज्ञान, वर प्राप्ति, गृह रक्षा, बल वृद्धि से दुष्टों का नाश होता है। सौभाग्य प्राप्ति हेतु माता गौरी पार्वती की पूजा साधना का विशेष महत्त्व है।।।।।।।।।।।।। Hoe werkt het? गणपति विघ्नहर्ता देव हैं, गणपति से ही गृहस गृहस्थ जीवन में धन धन धान्य, पुत्र-पौत‚ikk साथ ही शत्रु बाधा से रक्षा, निरोगता और विजयश्री हेतु भगवान कार्तिकेय का वर अत्यन्त आवश्यक है।।।।।।।।।।।।
महाशिवरात्रि पर्व ही ऐसा महोत्सव है जो भगवान शिव को भक्त अपने जीवन के विष सन्ताप, दुःख, कष्ट, अर्पित कर जीवन को आनन्द अमृतमय स्थितियों से युक्त कर सकता है क्योंकि भगवान शिव को पूजन स्वरूप में धतूरा, भांग, बेर, आक, बिल्व पत्र अर्पित करते है। जबकि इस तike से विधि विधि विधान से पूजन करने वाले साधक को सुख आनन्द, आरोग्यता, सौभाग्य, सन्तान सुख, धन लक्ष्मी की निरन्तर पcters सभी शिव परिवार के गणो की पूजा आराधना करने का महाशिवरात्रि सर्वश्रेष्ठ दिव्य पर्व है। अतः सपरिवार साधना पूजा महामृत्युन्जय ike रूद्राभिषेक अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिये जिससे जीवन में मृतcters
जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्ण रसमय, आनन्द युक्त, शौर्य, सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य युक्भव बनreekt जब जीवन शव से शिवमय की ओर अग्रसर होता है तो शिष्य साधक अनुभव करने लगता हैं कि उनका जीवन पूर्णता की तरपफ़ बढ़ते हुये, आनन्द की वृद्धि से क्रियाशील हो रहा है। महाशिवरात्रि महापर्व पर कुम्भ अमृत शिव-गौरी शक्ति दीक्षा को आत्मसात कर जीवन को शिव-गौरी कार्तिकेय विजयश्रीमय चेतना से युक्त करें, जिससे जीवन में निरन्तर सर्वस्वरूप में पूर्णता प्राप्त होती रहे।
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