शंकराचारuction के चारों पीठों में आदिकाल से श्री यंत्र एवं श्रीविद्या की अनवike अनव् ante में में उपctसना चली आ ही ही ही okी दarm द ok द ok प acht हयग्रीव, अगस्त्य, दत्तात्रेय, दुर्वाशा, परशुराम आदि ने श्रीविद्या की साधना दीक्षा की क्रिया अपने जीवन में सम्पन्न की जिससे जीवन में उन्होंने भोग और मोक्ष दोनों ही सोपानो को प्राप्त किया।
श्री विद्या एकमात्र विद्या है, जिसके नौ स्वरूपों में ही समस्त कामनाओं की पूर्ति का मंता मंतct सर्व प्रथम तनावमुक्त जीवन, प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति, जीवन के रोग-शोक का शमन, शत्रु बाधा से मुक्ति, राज्य पक्ष से अनुकूलता एवं सम्मान, जीवन में पूर्ण भाग्योदय, आर्थिक सुदृढ़ता प्रत्येक अनिष्ट का शमन, पूर्ण गृहस्थ सुख एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व भौतिक रूप Hoe u uw geld kunt verdienen श्री विद्या पूर्ण रूप सike दुःख नशिनी नशिनी श्री विद्या दीक्षा से साधक जीवन की अनेक समस्याओं से निवृत्त हो जाता है।।।।।
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